6 जुलाई – पटना के गांधी मैदान में विराट सनातन महाकुंभ

भूमिका
6 जुलाई 2025 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में एक भव्य सनातन महाकुंभ आयोजित किया जा रहा है। यह आयोजन भगवान परशुराम जन्मोत्सव के समापन अवसर पर हो रहा है और इसका उद्देश्य सनातन संस्कृति का पुनरुत्थान व सामाजिक-राष्ट्रीय एकता में योगदान देना है ।

प्रमुख आयोजक व संरक्षक
संरक्षक: पूर्व केन्द्रीय मंत्री और श्रीराम कर्मभूमि न्यास के संस्थापक, अश्विनी कुमार चौबे  

अध्यक्षता: जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज  

उद्घाटनकर्ता: बिहार के राज्यपाल, डॉ. आरिफ मोहम्मद खान  

विशिष्ट अतिथि एवं आकर्षण

बाबा बागेश्वर (पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री) – हनुमत कथा व चालीसा सहित आध्यात्मिक प्रवचन देंगे । हालांकि, उनका ‘दरबार’ इस आयोजन में नहीं लगेगा ।

कार्यक्रम में तीन राज्यों के मुख्यमंत्री के शामिल होने की संभावना है ।

वरिष्ठ संत–साधु, महामंडलेश्वर, शंकराचार्यगण, और धार्मिक विद्वान भी मौजूद रहेंगे ।
कार्यक्रम की रूपरेखा

1. 108 परशु संकल्प – सुबह 7 बजे से विभिन्न गांवों से लाए गए 108 फरसे (परशु), जो भगवान परशुराम का प्रतीक हैं, स्थापित किए जाएंगे ।

2. समूह हनुमान एवं परशुराम चालीसा पाठ – प्रातः 9:30 बजे से सामूहिक पाठ, जिसका उद्देश्य विश्व शांति व भारत का नेतृत्व है ।

3. ज्ञान गोष्ठियाँ – वेद, पुराण, उपनिषद व रामायण पर आधारित वक्तव्य व प्रवचन होंगे ।

4. संस्कृति संदेश – सामाजिक समरसता, युवाओं में ऊर्जा, भक्ति संस्कृति को बढ़ावा, राष्ट्रनिर्माण, अन्याय व भ्रष्टाचार के विरुद्ध जागृति ।

मकसद और प्रभाव

यह महाकुंभ “सांस्कृतिक–सामाजिक महायज्ञ” है – जो संतुलन, एकता व राष्ट्रीय जागरण को उत्साहित करता है ।

मुख्य लक्ष्य:

• सनातन संस्कृति का पुनर्जागरण

• सामाजिक सद्भावना और समानता

• युवाओं में पराक्रम एवं जीवन मूल्यों की जागरूकता

• अन्याय-विरोधी चेतना (परशुराम प्रतीक्षा) ।

व्यवस्थाएँ एवं तैयारी 🛡️

रथ यात्रा के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र तक संदेश पहुंचाया गया है – लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति की संभावना ।

सुरक्षा, सुविधा व्यवस्था और प्रवेश निःशुल्क है; लेकिन 10,000 विशेष पास जारी किए गए ।

दिव्यांगजन, वृद्धजन और महिलाओं के लिए विशेष इंतजाम हैं ।

महत्वपूर्ण तथ्य:
6 जुलाई को पटना के गांधी मैदान में हो रहा यह विराट सनातन महाकुंभ धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक गौरव और राष्ट्रीय आत्मा का संगम है। बाबा बागेश्वर के प्रवचन, संतों की उपस्थिति, सामूहिक चालीसा व परशुराम प्रतीक्षा इसे एक ऐतिहासिक आयोजन बनाती है। यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय–सांस्कृतिक महायज्ञ है, जो ‘एकता में विविधता’ और ‘भक्ति में ऊर्जा’ का प्रतीक है।


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